अविवाहित महिला को गर्भपात की अनुमति देने से दिल्ली उच्च न्यायालय का इनकार, जानिए ये है कारण


-संबंधित याचिकाकर्ता महिला की उम्र 25 वर्ष है और दो दिन बाद यानी 18 जुलाई को उसकी गर्भावस्था 24 सप्ताह पूरे कर रही है


नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अविवाहित महिला को अपने 23 सप्ताह के भ्रूण को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि इस बार गर्भपात कानून के तहत 20 हफ्ते के बाद आपसी सहमति से पैदा हुए भ्रूण को नष्ट करने की इजाजत नहीं है। 

साथ ही कोर्ट ने संबंधित महिला के इस तर्क पर केंद्र से जवाब मांगा है कि अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक भ्रूण का चिकित्सकीय गर्भपात नहीं कराने देना भेदभावपूर्ण है।

18 जुलाई को समाप्त होने वाले 24 सप्ताह -

संबंधित याचिकाकर्ता महिला की उम्र 25 वर्ष है और दो दिन बाद यानी 18 जुलाई को उसकी गर्भावस्था 24 सप्ताह पूरे कर रही है। इस बार उसके संबंधित साथी ने शादी करने से इनकार कर दिया है, उसने कोर्ट को यह भी बताया है। साथ ही यदि आप विवाह के बाहर बच्चे को जन्म देते हैं तो आपको मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि वह मां बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने संबंधित याचिका पर बोलते हुए कहा कि अदालत संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में कानून के दायरे से आगे नहीं जा सकती है। अदालत ने 15 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि 'याचिकाकर्ता, जो एक अविवाहित महिला है और एक सहमति के रिश्ते से गर्भवती हुई है, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट- 2003 के तहत कवर नहीं है।Ó

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