उथलपुथल रोकने के लिए आरबीआई ने मुद्रा बाजार में दिया दखल


मुंबई। विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इसमें दखल देने को मजबूर है। आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर बी पी कानूनगो ने मार्केट पार्टिसिपेंट्स को एक स्पीच में यह बात कही। उन्होंने कहा कि मुद्रा बाजार में आई अचानक उथलपुथल के कारण यह कदम उठाना पड़ा है और इसका इकनॉमिक फंडामेंटल्स से कोई लेना-देना नहीं है। रिजर्व बैंक का रुपये पर लंबे समय से यही नजरिया रहा है। कानूनगो ने कहा, 'भारत में करीब एक दशक से रुपये की चाल विदेशी निवेश से तय होती रही है। इस दौरान इस पर करेंट अकाउंट बैलेंस का असर नहीं पड़ा है। उन्होंने बताया कि लंबी अवधि का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और डेट इन्वेस्टमेंट कमोबेश सामान्य बना हुआ है और यह इकनॉमिक फंडामेंटल्स के मुताबिक है। हालांकि, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश इस पर निर्भर करता है कि एसेट से रिटर्न कैसा मिल रहा है। इस पर निवेशकों को जोखिम उठाने की क्षमता का भी असर पड़ता है।
उन्होंने सिंगापुर में फॉरेक्स असोसिएशन ऑफ इंडिया में मार्केट पार्टिसिपेंट्स से कहा, 'इन हालात में विदेशी मुद्रा बाजार में खलबली के बीच हमारे पास बाजार में दखल देकर स्थिति सामान्य बनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। रुपया हाल में एक साल के निचले स्तर पर पहुंच गया था। इसके बाद डेप्युटी गवर्नर की तरफ से यह बयान आया है। चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध की वजह से दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स के साथ भारतीय मुद्रा में भी कमजोरी आई है और यह डॉलर के मुकाबले 72 का स्तर पार कर चुका है। कानूनगो ने यह भी माना कि ग्लोबल ग्रोथ भी कमजोर हो रही है।
उन्होंने कहा, 'विकसित देशों और इमर्जिंग मार्केट्स में आर्थिक विकास दर कम हो रही है। भारत और चीन की ग्रोथ भी कम हुई है, जिनका हाल के वर्षों में ग्लोबल ग्रोथ में बड़ा योगदान रहा है। रिजर्व बैंक के डेप्युटी गवर्नर के मुताबिक, दुनिया भर के केंद्रीय बैंक फिर से एक साथ ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं। पिछली बार 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के वक्त दुनिया के कई केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती की थी।
आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर ने यह भी कहा कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध के सुलझने के जल्द आसार नहीं दिख रहे हैं, लेकिन इसके बढऩे की भी आशंका नहीं दिख रही है। कानूनगो ने बताया, 'सीमा शुल्क बढ़ाने की जो भी आर्थिक वजहें या दलील रही हों, इतना तो तय है कि उनके कारण ग्लोबल ग्रोथ घट रही है।

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