नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक कमेटी ने अक्टूबर में अरावली पहाडिय़ों और पर्वतमालाओं की परिभाषा बदलने की सिफारिश की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इसे लागू करने पर रोक लगा दी।
कमेटी की क्या सिफारिशें थीं?
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी ने सिफारिश की कि अरावली जिलों में कोई भी भू-आकृति जो स्थानीय भू-आकृति से 100 मीटर या उससे ज़्यादा ऊंची है, उसे 'अरावली पहाड़ीÓ के रूप में जाना जाना चाहिए और अगर ऐसी दो या दो से ज़्यादा पहाडिय़ां एक-दूसरे से 500 मीटर के अंदर हैं, तो उनके ग्रुप को 'ग्रुप अरावली रेंजÓ कहा जाना चाहिए।
अरावली की नई परिभाषा का विरोध पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और विपक्षी दलों का आरोप है कि अरावली की नई परिभाषा से पहाड़ी इकोसिस्टम का बड़ा हिस्सा माइनिंग के लिए खुल सकता है। साथ ही, केंद्र की नई परिभाषा बिना साइंटिफिक असेसमेंट या पब्लिक कंसल्टेशन के है। इससे अरावली के अस्तित्व को ही खतरा है।
अरावली रेंज और पहाडिय़ों का महत्व
अरावली की पहाडिय़ाँ और रेंज दिल्ली से हरियाणा, राजस्थान होते हुए गुजरात तक फैली हुई हैं। इस इलाके में 37 जिले आते हैं। अरावली एक नेचुरल रुकावट है जो रेगिस्तान बनने से रोकती है और बायोडायवर्सिटी और वॉटर रिचार्ज को बचाने में अहम भूमिका निभाती है।
नए माइनिंग लाइसेंस पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को अरावली की पहाडिय़ों और रेंज की एक जैसी परिभाषा अपनाई और एक्सपर्ट रिपोर्ट मिलने तक इलाके में नए माइनिंग लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा दी। बाद में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी लाइसेंस पर रोक लगाने की घोषणा की।
