नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फ़ैसला दिया कि कोर्ट के पास बिल पर मंज़ूरी देते समय प्रेसिडेंट और गवर्नर के फ़ैसलों के लिए टाइम लिमिट तय करने का अधिकार नहीं है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने साफ किया कि गवर्नर पर कोई टाइम लिमिट नहीं लगाई जा सकती, लेकिन वह बिलों को अनिश्चित समय तक रोक नहीं सकते। गवर्नर को उनके फैसलों के लिए पर्सनली जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन उनके फैसलों का ज्यूडिशियल रिव्यू हो सकता है।
कोर्ट ने साफ किया कि गवर्नर बिलों को अनिश्चित समय तक पेंडिंग नहीं रख सकते, लेकिन अगर इसे मंजूरी नहीं मिलती है, तो इसे लेजिस्लेटिव असेंबली को वापस भेजना होगा। लेकिन कोर्ट अपना फैसला देने के लिए कोई तय टाइम लिमिट नहीं लगा सकता। इस फैसले से, गवर्नर/प्रेसिडेंट और कोर्ट की भूमिकाओं के बीच कॉन्स्टिट्यूशनल सीमाएं अब और साफ हो गई हैं।
कोर्ट की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा कि गवर्नर के पास मंजूरी देने, रोकने या लेजिस्लेटिव असेंबली को वापस भेजने के ऑप्शन हैं। कोर्ट के पास 'एप्रिसिएटिव एसेंटÓ देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट गवर्नर की कॉन्स्टिट्यूशनल भूमिका नहीं ले सकता। फैसलों के लिए टाइम लिमिट तय करना शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। गवर्नर पर टाइम लिमिट लगाने का लॉजिक संविधान की फ्लेक्सिबिलिटी के खिलाफ है।
तमिलनाडु केस में पहले का फैसला अनकॉन्स्टिट्यूशनल
कोर्ट ने 2025 के उस फैसले को भी अमान्य कर दिया, जिसमें 2 जजों की बेंच ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करके तमिलनाडु में 10 बिलों को "इंप्लाइड एसेंट" दिया था। कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने साफ किया कि कोर्ट खुद गवर्नर या प्रेसिडेंट के अधिकार क्षेत्र में फैसले नहीं ले सकता।
असल मामला क्या है?
31 अक्टूबर, 2023 को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गवर्नर आरएन रवि के खिलाफ कई बिलों को अनिश्चित काल तक पेंडिंग रखने के खिलाफ एक पिटीशन फाइल की थी। इस पर 8 अप्रैल, 2025 को दो जजों की बेंच ने गवर्नर की भूमिका को गलत पाते हुए कुछ बिलों को इंप्लाइड एसेंट देने का फैसला किया था। इस फैसले को अब कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने अनकॉन्स्टिट्यूशनल घोषित कर दिया है।
प्रेसिडेंट का सवाल क्या था?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिकल 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या कोर्ट बिल पर फैसला लेने के लिए गवर्नर या राष्ट्रपति के लिए टाइम लिमिट तय कर सकता है। इस पर कोर्ट ने साफ किया कि टाइम लिमिट तय करना कोर्ट का मामला नहीं है।
