धूल-बादलों के संबंध से तय होता है मंगल का मौसम
नई दिल्ली। मंगल पर उठती धूलभरी आंधियों, बर्फीले बादलों और विचित्र बवंडरों के बीच छिपे मौसम के रहस्य सामने आने लगे हैं। भारत के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के नेतृत्व में हुए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने पहली बार विस्तार से यह समझाया है कि कैसे ये प्राकृतिक घटनाएं मंगल के वातावरण को आकार देती हैं और उसमें लगातार बदलाव लाती हैं।
शोध में मंगल पर दिखने वाले सूक्ष्म बर्फीले बादलों की भी पहचान की गई है। ये बादल मुख्यत: विषुवत रेखा, ऊंचे ज्वालामुखी, ध्रुवों और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में बनते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं। एफीलियन क्लाउड बेल्ट, जो गर्मियों में बनते हैं जब मंगल सूर्य से सबसे दूर होता है और पोलर हुड क्लाउड, जो सर्दियों में ध्रुवों के पास दिखाई देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन बादलों का निर्माण वायुमंडल में मौजूद धूल की मात्रा पर निर्भर करता है, जिससे पता चलता है कि धूल और बादलों का आपसी संबंध मंगल के मौसम को दिशा देता है। यह शोध न केवल लाल ग्रह की मौजूदा जलवायु को समझने में अहम है बल्कि भविष्य के मानव अभियानों और वहां जीवन की संभावनाओं पर भी असर डाल सकता है। यह अध्ययन एनआईटी राउरकेला के प्रोफेसर जगबन्धु पांडा और उनके शोधार्थी अनिर्बान मंडल के निर्देशन में हुआ है। इसमें संयुक्त अरब अमीरात विश्वविद्यालय के डॉ. बिजय कुमार गुहा, डॉ. क्लाउस गेबार्ड और चीन के सुन यात-सेन विश्वविद्यालय के डॉ. झाओपेंग वू ने भी सहयोग दिया।
दो दशकों के आंकड़ों पर आधारित हैं अध्ययन
शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल न्यू एस्ट्रोनॉमी रिव्यू में प्रकाशित किए गए हैं। इस अध्ययन की बुनियाद भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंगल अभियानों से पिछले दो दशकों में जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन में मंगल के मौसमी चक्र मौसम को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख तत्वों धूल भरा बवंडर, धूलभरी आंधियां और बर्फीले बादलों का गहन विश्लेषण किया है।
पूरे ग्रह पर चलती हैं धूलभरी आंधियां
कई बार मंगल पर इतनी तीव्र धूलभरी आंधियां उठती हैं कि पूरा ग्रह इसकी चपेट में आ जाता है। जैसे ही सूरज की किरणें सतह की धूल को गर्म करती हैं, हवा की रफ्तार बढ़ जाती है और और भी अधिक धूल उठती है, जिससे आंधी और तेज हो जाती है। यह प्रक्रिया वायुमंडलीय तापमान में भारी उतार-चढ़ाव लाती है।
भविष्य के मिशनों के लिए अहम संकेत
प्रोफेसर जगबन्धु पांडा के अनुसार मंगल के मौसम की सटीक समझ केवल वैज्ञानिक रुचि का विषय नहीं है, बल्कि यह भविष्य के मानव अभियानों की सफलता और अंतरिक्ष यानों की सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि मंगल पर मौसम की जानकारी मिलने से यह समझने में भी मदद मिलेगी कि क्या वहां कभी जीवन संभव था या हो सकता है।
वैज्ञानिकों की नजर में संभावनाओं का नया द्वार
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अध्ययन एक ओर जहां मंगल के जटिल मौसमी तंत्र की समझ को व्यापक बनाता है, वहीं दूसरी ओर भविष्य में वहां की जलवायु का पूर्वानुमान लगाने में भी सहायक हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे-जैसे और अंतरिक्ष मिशन मंगल की ओर अग्रसर होंगे, ऐसे शोध वहां की जलवायु और सतह की विशेषताओं को बेहतर समझने की राह आसान करेंगे।