जलवायु परिवर्तन के अनुरूप खेती को बनाएं लाभ का धंधा : राज्यपाल सुश्री उइके


राज्यपाल ने भारतीय कृषि अर्थशास्त्र सोसायटी के 79वें सम्मेलन का किया शुभारंभ


 रायपुर। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के सभागृह में आयोजित भारतीय कृषि अर्थशास्त्र सोसायटी के 79वें तीन दिवसीय सम्मेलन का शुभारंभ किया। उन्होंने मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित करते हुए कहा कि कृषि वैज्ञानिक जलवायु में हो रहे परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करें। उन्होंने कहा कि खेती में नवीनतम कृषि तकनीक, मशीनरी और उन्नत बीज का उपयोग करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जाना चाहिए और साथ ही यह भी प्रयास किया जाए कि किसानों को कृषि मशीनरी रियायती दरों पर या अन्य किसी तरीके से उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए।
राज्यपाल ने कहा कि यह खुशी की बात है कि वर्तमान में इस सोसायटी का नेतृत्व प्रोफेसर अभिजीत सेन जैसे विद्वान तथा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कर रहे हैं। यह सोसायटी न केवल देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी कृषि अर्थशास्त्रियों के एक पेशेवर संघ के रूप में विकसित हुई है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में जिन तीन विषयवस्तुओं पर विचार-विमर्श किया जाएगा, वे छत्तीसगढ़ राज्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। राज्यपाल ने उम्मीद जताई कि इस सम्मेलन के दौरान यहां एकत्र कृषि अर्थशास्त्री सार्थक विचार-विमर्श करेंगे एवं युवा कृषि अर्थशास्त्रियों को पेशेवर गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करेंगे और साथ ही अपने कार्यक्षेत्र को बढ़ाने की संभावनाओं को तलाशेंगे। राज्यपाल ने भारतीय कृषि अर्थशास्त्र सोसायटी द्वारा कृषि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में किये गए अनुसंधान, अध्यापन तथा साहित्य प्रकाशन की सराहना भी की।
राज्यपाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है और यहां आदिवासियों की जनसंख्या 32 प्रतिशत है। यहां के आदिवासी अपना जीवन-यापन हेतु वनोपज और कृषि पर मुख्य रूप से निर्भर हैं। राज्यपाल ने कहा कि इनके उत्थान हेतु कार्य करना एवं इन्हें मुख्य धारा में शामिल करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है। उन्होंने आह्वान किया कि सोसायटी के तत्वावधान में ऐसे विषयों पर विचार-विमर्श किया जावे एवं सोसायटी इस विश्वविद्यालय में इस हेतु एक कार्यशाला का आयोजन कर अपनी अनुशंसाएं प्रदान करें, जिससे उनके आधार पर छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की बेहतरी के लिये कार्य किया जा सके।
कृषि उत्पादन में वृद्धि एवं सिंचाई सुविधाओं में विस्तार हेतु शासन दृढ़संकल्पित -  चौबे
    कृषि एवं जल संसाधन मंत्री  रविन्द्र चौबे ने कहा कि यह खुशी की बात है कि कृषि की आर्थिक पहलु पर आधारित ऐसा सेमिनार छत्तीसगढ़ में आयोजित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। राज्य शासन द्वारा सिंचाई के क्षेत्र में विभिन्न योजनाएं क्रियान्वित की जा रही है, इससे प्रदेश में सिंचाई का विस्तार भी होगा। इसके फलस्वरूप धान के उत्पादन को दुगुनी होने की संभावना है। इन परिस्थितियों में हमारा किसान बाजार में स्वयं को किस प्रकार सुरक्षित रख पाएगा और उसके अच्छे भविष्य को लेकर क्या संभावनाएं होंगी, इस पहलू पर इस सेमिनार में अवश्य विचार करें।
    श्री चौबे ने कहा कि छत्तीसगढ़ शासन ने किसानों के हित में अनेक कदम उठाये हैं। छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल धान का राज्य सरकार द्वारा उपार्जन मूल्य 2500 रूपये प्रति क्विंटल किया गया है। इसके अलावा कृषि के विकास के लिए कई अन्य योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं। राज्य सरकार की कोशिश है कि किसानों को खेती से ज्यादा से ज्यादा लाभ हो और वे खुशहाल जिन्दगी जी सकें। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन में कृषि अर्थशास्त्री विशेष रूप से छत्तीसगढ़ में कृषि के क्षेत्र में व्याप्त समस्याओं और चुनौतियों के संबंध में सार्थक विचार-विमर्श करेंगे और ऐसी अनुशंसाएं देंगे जिनसे कृषि को लाभकारी व्यवसाय के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।
श्री चौबे ने कहा कि इस सेमिनार में देश के जलवायु परिवर्तन सहित देश में कृषि की अन्य परिस्थितियों पर मंथन होगा। साथ ही छत्तीसगढ़ में कृषि की स्थितियों और यहां के कृषि उत्पाद की उत्तम मार्केटिंग कैसे किया जाए, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम को डॉ. डी. के. मरेठिया, पद्विभूषण डॉ. अभिजीत सेन और कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में डॉ. एस.एन. झारवाल और डॉ. ए.एन. नारायण मूर्ति को उनके कृषि के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय योगदान के लिए इंडियन सोसायटी ऑफ एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स का वर्ष 2019 का फैलो पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही एग्रीकल्चर स्टार्टप और एग्रीकल्चर एक्यूबेटर नामक दो पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में देश भर से आए कृषि वैज्ञानिक और नागरिक गण उपस्थित थे।

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