पेशावर । भारत और पाकिस्तान की सीमा पर बनने वाला करतारपुर कॉरिडोर न सिर्फ इन दोनों देशों में बल्कि पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा है । भारत सरकार द्वारा पंजाब के डेरा बाबा नानक से लेकर पाकिस्तान से सटी अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर कॉरिडोर को मंजूरी देने के बाद पाक ने भी इसके निर्माण को हरी झंडी दे दी है। इससे पाकिस्तान में रावी नदी के तट पर स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब जाने वाले सिख श्रद्धालुओं को सुविधा मिलेगी।
क्यों बनाया जा रहा है करतारपुर कॉरिडोर?
करतारपुर कॉरीडोर सिखों के लिए सबसे पवित्र जगहों में से एक है। करतारपुर साहिब सिखों के प्रथम गुरु, गुरुनानक देव जी का निवास स्थान थाय़गुरू नानक ने अपनी जिंदगी के आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन यहीं गुजारे थे। उनका सारा परिवार यहीं आकर बस गया था। उनके माता-पिता और उनका देहांत भी यहीं पर हुआ था। इस लिहाज से यह पवित्र स्थल सिखों के मन से जुड़ा धार्मिक स्थान है। बाद में उनकी याद में यहां पर एक गुरुद्वारा बनाया गया। इसे ही करतारपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरुनानक ने रावी नदी के किनारे एक नगर बसाया और यहां खेती कर उन्होंने 'नाम जपो, किरत करो और वंड छको' (नाम जपें, मेहनत करें और बांट कर खाएं) का फलसफा दिया था। इतिहास के अनुसार गुरुनानक देव की तरफ से भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी इसी स्थान पर सौंपी गई थी जिन्हें दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाना जाता है । आखिर में गुरुनानक देव ने यहीं पर समाधि ली थी।
इसलिए है खास
यह पाकिस्तान के नारोवाल जिले में है जो पंजाब मे आता है. यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है,जहां पर आज गुरुद्वारा है। यह कॉरिडोर पंजाब के गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक होगा। इसे भारत-पाक के बीच एेसा सेतु माना जा रहा है जिससे दोनों देशों के बीच तल्ख रिश्तों में काफी हद तक सुधार होगा। भारत में बनने वाला कॉरिडोर करीब 2 किलोमीटर का होगा। वहीं, पाकिस्तान में भी कॉरिडोर 3 किलोमीटर का होगा। 26 नवंबर को कॉरिडोर के भारतीय हिस्से में आधारशिला रखी जाएगी। इस कॉरिडोर को बनाने की लागत पर बाते करें तो भारत की ओर से करीब 16 करोड़ रुपए और पाकिस्तान की ओर से 104 करोड़ रुपए खर्च आएगा।इस कॉरिडोर की सबसे ख़ास बात यह है कि यहां हेरिटेज सिटी और यूनिवर्सिटी भी होगी। सुल्तानपुर लोधी को हेरिटेज सिटी बनाया जाएगा जिसका नाम 'पिंड बाबे नानक दा' रखा जाएगा।
मालूम हो कि यह कॉरिडोर पंजाब के गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक होगा। पाकिस्तान से भी उनकी सीमा के अंदर कॉरिडोर बनाकर सुविधाओं का विकास करने की मांग की जाएगी। हेरिटेज सिटी में गुरु नानक देव जी के जीवन और उनकी शिक्षा के बारे में बताया जाएगा। गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी में 'सेंटर फॉर इंटरफेथ स्टडीज़' का निर्माण किया जाएगा। कॉरिडोर के अलावा ब्रिटेन और कनाडा की दो यूनिवर्सिटी में इस सेंटर के नाम के साथ नई पीठ स्थापित की जाएगी। साथ ही गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर ख़ास डाक टिकट और सिक्के जारी किए जाएंगे।
पाकिस्तानी अथॉरिटीज रखती है इस बात का ध्यान
यह गुरुद्वारा रावी नदी के पास है और डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है। यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। गुरुद्वारा भारत की तरफ से साफ नजर आता है। पाकिस्तानी अथॉरिटीज इस बात का ध्यान रखती हैं कि इसके आसपास घास न जमा हो पाए और वह समय-समय पर इसकी कटाई-छटाई करते रहते हैं ताकि इसे देखा जा सके। भारतीय सीमा की तरफ बसे श्रद्धालु सीमा पर खड़े होकर दूरबीन से इसका दर्शन करते हैं। मई 2017 में अमेरिका स्थित एक एनजीओ इकोसिख ने गुरुद्वारे के आसपास 100 एकड़ की जमीन पर जंगल का प्रस्ताव भी दिया था।
रावी नदी से दिक्कत
रुद्वारे की वर्तमान बिल्डिंग करीब 1,35,600 रुपए की लागत से तैयार हुई थी। इस रकम को पटियाला के महाराज सरदार भूपिंदर सिंह की ओर से दान में दिया गया था। बाद में साल 1995 में पाकिस्तान की सरकार ने इसकी मुरम्मत कराई थी और साल 2004 में यह काम पूरा हो सका। लेकिन इसके करीब स्थित रावी नदी इसकी देखभाल में कई मुश्किलें भी पैदा करती है।साल 2000 में पाकिस्तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को बॉर्डर पर एक पुल बनाकर वीजा फ्री एंट्री देने का फैसला किया था। साल 2017 में भारत की संसदीय समिति ने कहा था कि दोनों देशों के बीच आपसी संबंध इतने बिगड़ चुके हैं कि किसी भी तरह का कॉरीडोर संभव नहीं है।
क्यों बनाया जा रहा है करतारपुर कॉरिडोर?
करतारपुर कॉरीडोर सिखों के लिए सबसे पवित्र जगहों में से एक है। करतारपुर साहिब सिखों के प्रथम गुरु, गुरुनानक देव जी का निवास स्थान थाय़गुरू नानक ने अपनी जिंदगी के आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन यहीं गुजारे थे। उनका सारा परिवार यहीं आकर बस गया था। उनके माता-पिता और उनका देहांत भी यहीं पर हुआ था। इस लिहाज से यह पवित्र स्थल सिखों के मन से जुड़ा धार्मिक स्थान है। बाद में उनकी याद में यहां पर एक गुरुद्वारा बनाया गया। इसे ही करतारपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरुनानक ने रावी नदी के किनारे एक नगर बसाया और यहां खेती कर उन्होंने 'नाम जपो, किरत करो और वंड छको' (नाम जपें, मेहनत करें और बांट कर खाएं) का फलसफा दिया था। इतिहास के अनुसार गुरुनानक देव की तरफ से भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी इसी स्थान पर सौंपी गई थी जिन्हें दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाना जाता है । आखिर में गुरुनानक देव ने यहीं पर समाधि ली थी।
इसलिए है खास
यह पाकिस्तान के नारोवाल जिले में है जो पंजाब मे आता है. यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है,जहां पर आज गुरुद्वारा है। यह कॉरिडोर पंजाब के गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक होगा। इसे भारत-पाक के बीच एेसा सेतु माना जा रहा है जिससे दोनों देशों के बीच तल्ख रिश्तों में काफी हद तक सुधार होगा। भारत में बनने वाला कॉरिडोर करीब 2 किलोमीटर का होगा। वहीं, पाकिस्तान में भी कॉरिडोर 3 किलोमीटर का होगा। 26 नवंबर को कॉरिडोर के भारतीय हिस्से में आधारशिला रखी जाएगी। इस कॉरिडोर को बनाने की लागत पर बाते करें तो भारत की ओर से करीब 16 करोड़ रुपए और पाकिस्तान की ओर से 104 करोड़ रुपए खर्च आएगा।इस कॉरिडोर की सबसे ख़ास बात यह है कि यहां हेरिटेज सिटी और यूनिवर्सिटी भी होगी। सुल्तानपुर लोधी को हेरिटेज सिटी बनाया जाएगा जिसका नाम 'पिंड बाबे नानक दा' रखा जाएगा।
मालूम हो कि यह कॉरिडोर पंजाब के गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक होगा। पाकिस्तान से भी उनकी सीमा के अंदर कॉरिडोर बनाकर सुविधाओं का विकास करने की मांग की जाएगी। हेरिटेज सिटी में गुरु नानक देव जी के जीवन और उनकी शिक्षा के बारे में बताया जाएगा। गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी में 'सेंटर फॉर इंटरफेथ स्टडीज़' का निर्माण किया जाएगा। कॉरिडोर के अलावा ब्रिटेन और कनाडा की दो यूनिवर्सिटी में इस सेंटर के नाम के साथ नई पीठ स्थापित की जाएगी। साथ ही गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर ख़ास डाक टिकट और सिक्के जारी किए जाएंगे।
पाकिस्तानी अथॉरिटीज रखती है इस बात का ध्यान
यह गुरुद्वारा रावी नदी के पास है और डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है। यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। गुरुद्वारा भारत की तरफ से साफ नजर आता है। पाकिस्तानी अथॉरिटीज इस बात का ध्यान रखती हैं कि इसके आसपास घास न जमा हो पाए और वह समय-समय पर इसकी कटाई-छटाई करते रहते हैं ताकि इसे देखा जा सके। भारतीय सीमा की तरफ बसे श्रद्धालु सीमा पर खड़े होकर दूरबीन से इसका दर्शन करते हैं। मई 2017 में अमेरिका स्थित एक एनजीओ इकोसिख ने गुरुद्वारे के आसपास 100 एकड़ की जमीन पर जंगल का प्रस्ताव भी दिया था।
रावी नदी से दिक्कत
रुद्वारे की वर्तमान बिल्डिंग करीब 1,35,600 रुपए की लागत से तैयार हुई थी। इस रकम को पटियाला के महाराज सरदार भूपिंदर सिंह की ओर से दान में दिया गया था। बाद में साल 1995 में पाकिस्तान की सरकार ने इसकी मुरम्मत कराई थी और साल 2004 में यह काम पूरा हो सका। लेकिन इसके करीब स्थित रावी नदी इसकी देखभाल में कई मुश्किलें भी पैदा करती है।साल 2000 में पाकिस्तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं को बॉर्डर पर एक पुल बनाकर वीजा फ्री एंट्री देने का फैसला किया था। साल 2017 में भारत की संसदीय समिति ने कहा था कि दोनों देशों के बीच आपसी संबंध इतने बिगड़ चुके हैं कि किसी भी तरह का कॉरीडोर संभव नहीं है।