सिरिसेना ने आधी रात को नोटिफिकेशन पर साइन किया। सिरिसेना ने संसद को भंग के करने के लिए जारी गजट नोटिफिकेशन पर शुक्रवार आधी रात को दस्तखत किए। इसके मुताबिक, 19 से 26 नवंबर के बीच नामांकन भरे जा सकेंगे। 5 जनवरी को चुनाव होगा और 17 जनवरी तक नई संसद का गठन हो जाएगा। राजपक्षे के बहुमत जुटाने की कमजोर संभावना को देखते हुए उन्होंने कार्यकाल से 21 महीने पहले ही आम चुनाव के हालात पैदा कर दिए। संसद का कार्यकाल अगस्त 2020 तक का था। 14 नवंबर को राजपक्षे को बहुमत साबित करना था।
उधर, एक्सपर्ट्स का कहना है कि संसद भंग करने का राष्ट्रपति का फैसला असंवैधानिक है। 19वें संविधान संशोधन में सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल की बात कही गई है। विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) ने कहा कि हमें अचानक से संसद भंग करने का फैसला मंजूर नहीं है। राष्ट्रपति ने लोगों के अधिकारों पर कब्जा कर लिया है। प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने को विक्रमसिंघे ने संवैधानिक तख्तापलट बताया था। उन्होंने सरकारी निवास भी खाली करने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वह कानूनी रूप से अब भी देश के प्रधानमंत्री हैं और राष्ट्रपति को उन्हें पद से हटाने के कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। विक्रमसिंघे की फ्लोर टेस्ट कराने की अपील भी खारिज कर दी गई थी।
विक्रमसिंघे का कहना है कि संविधान के 19वें संशोधन के मुताबिक राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते। साथ ही, उन्हें संसद के साढ़े चार के कार्यकाल पूरा करने से पहले भंग करने का अधिकार भी नहीं है। विक्रमसिंघे को बर्खास्त करने के बाद सिरिसेना ने 16 नवंबर तक संसद निलंबित कर दी थी। इसके बाद राजपक्षे को संसद में 113 सांसदों का बहुमत साबित करने को कहा था। सिरिसेना ने एक रैली में यह दावा भी किया था कि संसद में उनके पास 113 सांसदों का समर्थन है।
इसके चलते राजपक्षे सदन में बहुमत साबित कर सकते हैं। शुक्रवार को राजपक्षे के प्रवक्ता ने बताया कि वह जादुई आंकड़े (113) से कुछ दूर रह गए हैं। सोमवार को स्पीकर कारू जयसूर्या ने भी सिरिसेना के फैसले को अंसवैधानिक और गैर-लोकतांत्रिक करार दिया था। उन्होंने कहा था कि वह राजपक्षे को तब तक प्रधानमंत्री नहीं मानेंगे, जब तक वह सदन में बहुमत साबित न कर दें।