तेज़ हवाओं के साथ 'कौंडिन्य' ओमान के लिए रवाना; 18 नाविक 15 दिनों में 1,400 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे

 


पोरबंदर। 65 फुट लंबा नेवी का जहाज  'आईएनएसवी कौंडिन्य', जिसे 1,500 साल से भी ज़्यादा पुरानी पुरानी भारतीय जहाज बनाने की तकनीक का इस्तेमाल करके बनाया गया है, सोमवार को गुजरात के पोरबंदर से ओमान की राजधानी मस्कट के लिए रवाना हुआ। इस जहाज में कोई इंजन नहीं है। इसमें स्पीड के लिए स्टील, कील या मॉडर्न मशीनरी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह अपनी पालों में हवा के साथ ओमान की ओर निकल पड़ा।


ओमान को चुनने के पीछे का कारण यह है कि पुराने भारत का समुद्री व्यापार ओमान के रास्ते पश्चिम एशिया जाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहाज को उसकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं दीं। जहाज को पारंपरिक भारतीय सिलाई तकनीक का इस्तेमाल करके बनाया गया है और लकड़ी के तख्तों को जोडऩे के लिए नारियल के छिलकों का इस्तेमाल किया गया है। पालों पर ताकत और एनर्जी के प्रतीक के तौर पर पौराणिक पक्षी गंधभेर्नुदा और सूरज छपे हुए हैं। जहाज के अगले हिस्से पर शेर की पौराणिक आकृति बनी हुई है। डेक पर हड़प्पा काल की याद दिलाने वाला एक पत्थर का एंकर रखा गया है।


'आईएनएसवी कौंडिन्य' के पीछे असल में क्या आइडिया है? -


इस जहाज़ को बनाने की प्रेरणा अजंता की गुफाओं में 5वीं सदी की पेंटिंग से ली गई थी। शिपबिल्डिंग एक्सपट्र्स और नेवी इंजीनियरों ने इस पेंटिंग में डिज़ाइन की स्टडी की और यह जहाज़ बनाया। रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि यह पहल भारत की पुरानी समुद्री विरासत को फिर से जि़ंदा करने और इस विरासत को नई पीढ़ी तक ले जाने के लिए की गई है। वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन, नेवल कमांड के चीफ़, वेस्टर्न कमांड, और ओमानी एम्बेसडर ईसा सालेह अल शिबानी 'कौंडिन्य' को उसकी यात्रा की शुभकामनाएँ देने के लिए मौजूद थे।

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