एक ट्रिलियन डॉलर की मैन्युफैक्चरिंग वाली अर्थव्यवस्था बनने की ओर भारत


नई दिल्ली। भारत के विनिर्माण क्षेत्र ने बीते कुछ वर्षों में जो गति पकड़ी है, वह अब एक ठोस औद्योगिक क्रांति का संकेत दे रही है। देश का विनिर्माण निर्यात इंजन अब चहुमुखी दिशा में काम कर रहा है, और व्यापक वैश्विक व्यापार स्थायित्व के बीच इसकी प्रगति और भी तेज हो गई है। अप्रैल से अगस्त 2025 के बीच भारत का कुल निर्यात 6.18 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के साथ 349.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। इसी अवधि में व्यापारिक निर्यात का कुल मूल्य 184.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की समान अवधि (179.60 बिलियन डॉलर) की तुलना में 2.52 प्रतिशत अधिक है।


1 ट्रिलियन डॉलर की विनिर्माण अर्थव्यवस्था की ओर भारत

इन मजबूत संकेतकों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि भारत का विनिर्माण क्षेत्र वित्त वर्ष 2026 तक 87,57,000 करोड़ रुपये (1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) के आंकड़े को छूने की क्षमता रखता है। इसके अलावा, वर्ष 2030 तक यह क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था में हर साल 43,43,500 करोड़ रुपये (500 बिलियन डॉलर) से अधिक का योगदान दे सकता है। यह भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।


आईआईपी की वृद्धि और उच्च प्रदर्शन वाले उद्योग


हाल ही में जुलाई 2025 में आईआईपी में दजऱ् 3.5' वृद्धि इस बात का संकेत है कि भारत का औद्योगिक इंजन तेजी से दौड़ रहा है। इसमें मुख्य योगदान बुनियादी धातु, विद्युत उपकरण और गैर-धातु खनिज उत्पादों जैसे क्षेत्रों का रहा है। हालांकि, भारत के औद्योगिक उत्थान की कहानी केवल इन क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और वस्त्र उद्योग जैसे रणनीतिक क्षेत्र लंबी अवधि के लिए संरचनात्मक विकास को गति दे रहे हैं और भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को आकार दे रहे हैं।


इलेक्ट्रॉनिक्स: भारत का कारखाना अब डिजिटल हो चुका है

भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र, पिछले एक दशक में छह गुना उत्पादन वृद्धि और आठ गुना निर्यात वृद्धि का साक्षी बना है। वैल्यू एडिशन भी 30 प्रतिशत से बढ़कर 70 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, और 2027 तक इसे 90 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य है। मोबाइल विनिर्माण में तो क्रांतिकारी बदलाव हुआ है। सिर्फ दो इकाइयों से बढ़कर अब लगभग 300 इकाइयां देशभर में कार्यरत हैं — जिससे उत्पादन क्षमता में 150 गुना विस्तार हुआ है। मोबाइल फोन का निर्यात भी मात्र 1,500 करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो 127 गुना की उछाल है। वहीं, आयात पर निर्भरता 2014-15 में 75त्न से घटकर अब केवल 0.02त्न रह गई है। भारत आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बन चुका है।


एफडीआई प्रवाह ने बढ़ाई मजबूती


इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 से अब तक 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक एफडीआई को आकर्षित किया है। यह ध्यान देने योग्य है कि इस निवेश का 70 प्रतिशत पीएलआई योजना के लाभार्थियों द्वारा किया गया है, जिससे सरकार की नीतिगत दिशा की सफलता भी स्पष्ट होती है।

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