न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा केस: आंतरिक जांच के आधार पर न्यायिक कार्यभार वापस लेना सही: सुप्रीम कोर्ट


नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की रिट याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए बुधवार को कहा कि देश के मुख्य न्यायाधीश आंतरिक जाँच के आधार पर न्यायिक कार्यभार वापस ले सकते हैं। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने कहा कि न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम की धारा 3(2) आंतरिक प्रक्रिया शुरू करने और न्यायाधीश से न्यायिक कार्य वापस लेने की अनुमति देती है। पीठ ने कहा कि इस मामले में आंतरिक प्रक्रिया में किसी भी अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है, क्योंकि (शीर्ष अदालत के पिछले फैसलों के आधार पर) यह संविधान के अनुच्छेद 141 अनुसार कानून सही है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि आंतरिक जाँच के आधार पर मुख्य न्यायाधीश न्यायिक कार्यभार वापस ले सकते हैं लेकिन संसद सिफारिश को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है। पीठ ने टिप्पणी की, "मुख्य न्यायाधीश केवल एक डाकघर की तरह काम नहीं कर सकते। गंभीर कदाचार का सामना करने पर देश के मुख्य न्यायाधीश समिति की जांच के आधार पर संबंधित न्यायाधीश के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकते हैं। न्यायपालिका के संरक्षक के रूप में राष्ट्र के प्रति उनका कुछ कर्तव्य है। हम चुप रहकर केवल एक फैसला सुना सकते थे, लेकिन यह अन्याय होगा। न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायाधीश को हटाने के लिए मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को की गई सिफारिश की वैधता पर सवाल उठाया।

उन्होंने तर्क दिया कि यदि आंतरिक प्रक्रिया न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 124 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि यह असामान्य है क्योंकि न्यायमूर्ति वर्मा के मामले में जाँच शुरू करने से पहले कोई औपचारिक शिकायत नहीं की गई थी। यह प्रक्रिया दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट पर शुरू की गई थी।

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