न्यायिक कार्य केवल कानून के पालन तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें मानवीय संवेदना का समावेश भी आवश्यक है: न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा


 रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी द्वारा रायपुर संभाग के न्यायिक अधिकारियों के लिए एक दिवसीय संभागीय न्यायिक सेमिनार का आयोजन रायपुर के सिविल लाइन स्थित न्यू-सर्किट हाउस में किया गया। इस सेमिनार में रायपुर संभाग के चार जिलों के 126 न्यायिक अधिकारियों ने भाग लिया। कार्यशाला में प्रकरणों के शीघ्र निराकरण किये जाने, गिरफ्तारी रिमाण्ड और जमानत से संबधित प्रावधान, अभियुक्त की परीक्षण का उद्देश्य एवं प्रक्रिया तथा हिन्दु उत्तराधिकार अधिकार एवं विरासत से संबंधित कानून का विश्लेशण एवं अध्ययन किया जाना है। न्याय और विधिक ज्ञान के प्रकाशन का प्रतीक सेमिनार का शुभारंभ मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति श्री रमेश सिन्हा, मुख्य न्यायाधीश, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय एवं मुख्य संरक्षक छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी के द्वारा किया गया। सेमिनार में न्यायमूर्ति श्री नरेश कुमार चंद्रवंशी, न्यायमूर्ति श्री दीपक कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति श्री राकेश मोहन पांडेय, न्यायाधीश छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर की गरिमामयी उपस्थिति रही।

न्यायिक सेमिनार में मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश सिन्हा ने रायपुर संभाग के न्यायिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान में न्यायपालिका से अपेक्षाएं अत्यधिक बढ़ गई हैं। जनता हमसे निष्पक्षता, गति और संवेदनशीलता की अपेक्षा रखती है। सेमिनार में चर्चा के लिए निर्धारित विषय हमारे आपराधिक और दीवानी न्यायशास्त्र के मूल स्तंभ हैं। इन क्षेत्रों में दक्षता केवल प्रक्रियात्मक अनुपालन का विषय नहीं है, बल्कि निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने, व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की रक्षा करने और न्यायिक प्रक्रिया में सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर बल दिया कि हाल ही में अधिनियमित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) एवं अन्य नए कानूनों के प्रकाश में, न्यायाधीशों के लिए इन प्रावधानों से भली-भांति परिचित होना अत्यंत आवश्यक है, विशेष रूप जमानत संबंधी प्रावधान से हैं, ताकि न्यायिक निर्णयों में एकरूपता एवं विधिक शुद्धता सुनिश्चित की जा सके। यदि आरोपी के अधिकारों के प्रतिकूल कोई संभावना हो, तो न्यायाधीशों को यह अत्यंत सावधानीपूर्वक देखना चाहिए कि क्या प्रस्तुत किया जा रहा है और क्या नहीं।


 किसी प्रकरण के तथ्यों और परिस्थितियों में न्यायाधीश की अपनी राय हो सकती है, परंतु वे कानून की सीमाओं तथा सर्वाेच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों से बंधे होते हैं। मजिस्ट्रेट को जमानत आवेदन पर आदेश करते समय सावधानी बरतनी चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि अपराध क्रमांक, जिन धाराओं के अंतर्गत आरोपी पर आरोप लगाया गया है, तथा आरोपी के संबंध में सही विवरण स्पष्ट रूप से उल्लेखित हो। उपर्युक्त में किसी भी प्रकार की चूक या त्रुटिपूर्ण विवरण उच्च न्यायालय द्वारा आवेदन के निस्तारण में विलंब का कारण बन सकता है, जिससे आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित हो सकती है।

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