हल्दी पाउडर में मिलावट का आरोपी 38 साल बाद बरी


नई दिल्ली। हल्दी पाउडर में मिलावट के एक आरोपी को करीब चार दशक बाद न्यायपालिका से इंसाफ मिला, जब उच्चतम न्यायालय ने उसे आरोपों से बरी कर दिया। न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने गुरुवार को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ प्रेमचंद की अपील मंजूर कर ली। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष अपने दावे और आरोपों को साबित करने में असफल रहा है, इसलिए संदेह का लाभ अभियुक्त के पक्ष में जाता है और उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त किया जाता है।
खंडपीठ के लिए न्यायमूर्ति एन वी रमन द्वारा लिखे फैसले में कहा गया है कि खाद्य निरीक्षक ने गवाही दी थी कि हल्दी पाउडर के नमूने को सरकारी विश्लेषक को भेज दिया गया था, लेकिन इस बाबत कोई रसीद अदालत के रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। न्यायालय ने कहा, "रिकॉर्ड के अनुसार, भेजे गये नमूने 20 अगस्त 1982 को सरकारी विश्लेषक के कार्यालय में प्राप्त हो गये थे, जबकि रिपोर्ट 18 दिन के बाद तैयार हुई थी। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र नहीं किया गया है कि नमूने में 'कीड़े-मकोड़ेÓ थे या यह 'मानव उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं था। साथ ही, इस अवधि के दौरान नमूने से छेड़छाड़ नहीं की गयी, इसके समर्थन में भी कोई साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं है। ऐसे में संदेह का लाभ अपीलकर्ता को जाता है।"
न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार अभियोजन आरोपी के खिलाफ खाद्य अपमिश्रण कानून की धारा 2(1ए)(एफ) की आवश्यकताओं को स्थापित करने में असफल रहा है। अभियोजन पक्ष ने न तो निचली अदालत में और न ही उच्च न्यायालय में संबंधित अधिनियम की धारा 16(एक) के तहत अपराध साबित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया गया था। गौरतलब है कि आरोपी के खिलाफ हल्दी पाउडर में मिलावट करने का आरोप था। निचली अदालत ने 13 साल की मुकदमेबाजी के बाद आरोपी को बरी कर दिया था, लेकिन हरियाणा सरकार ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिसने नौ दिसम्बर 2009 को फैसला सुनाते हुए आरोपी को दोषी करार दिया था और छह माह की जेल की सजा सुनायी थी। आरोपी ने दोषसिद्धि और सजा को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

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