नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बडे को बुधवार को आंशिक राहत देते हुए आत्मसमर्पण करने के लिए एक सप्ताह का अतिरिक्त समय दे दिया।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंड पीठ ने दोनों को यह कहते हुए आत्मसमर्पण के लिए एक सप्ताह की और मोहलत दे दी कि आगे उन्हें अब कोई छूट नहीं दी जायेगी। उन्हें आत्मसमर्पण करना ही होगा।
न्यायालय ने सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था। वेबसाइट पर डाले गये आदेश में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं को अब तक आत्मसमर्पण कर देना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, जबकि पता चला है कि मुंबई में अदालतेें काम कर रही हैं। याचिकाकर्ताओं को एक सप्ताह की और मोहलत दी जाती है, लेकिन इसके बाद उन्हें कोई समय नहीं दिया जायेगा।
दोनों याचिकाकर्ताओं के वकील ने खंड पीठ से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान कहा था कि उनके दोनों मुवक्किल 65 वर्ष से अधिक आयु के हैं और दिल की बीमारी से पीड़ित हैं। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के वक्त दोनों को जेल भेजना उन्हें मौत के मुंह में झोंकने के समान होगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हालांकि उनकी इस दलील का यह कहते हुए पुरजोर विरोध किया था कि याचिकाकर्ता कोरोना के नाम पर आत्मसमर्पण को ज्यादा से ज्यादा समय तक टालना चाहते हैं, जबकि जेल ही उनके लिए ज्यादा सुरक्षित स्थान होगा। न्यायालय ने इसके बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था।
गौरतलब है कि पिछले दिनों याचिकाकर्ताओं ने आत्मसमर्पण की अवधि बढ़ाये जाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उन्हें उच्च न्यायालय जाने की सलाह दी गयी थी। उच्च न्यायालय से उनकी याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने फिर से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।
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