विपरीत परिस्थितियों के बावजूद किराना दुकान का सफल संचालन कर रही ग्रामीण आदिवासी महिलायें

समूह से जुड़कर महिलाओं के जीवन में आया बदलाव

रायपुर। इंसान में अगर हिम्मत और कुछ नया कर गुजरने का जज्बा हो, तो कोई भी राह मुश्किल नहीं। यह बात नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के ग्राम पंचायत गरांजी की माँ काली स्व सहायता समूह की साक्षर महिलाओं ने सच कर दिखाया है। जिले के छोटे से गांव गरांजी की राधिका कचलाम और उनके जैसी 9 अन्य महिला सदस्यों ने विपरीत पारिवारिक परिस्थितियों के बीच किराना की दुकान का सफल कारोबार करके यह साबित कर दिया है कि गांव में भी किराना दुकान संचालित कर व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाएं विशेष पहचान बना सकती हैं। अभी तक ये समूह की महिला छोटे-मोटे काम और आपसी लेन देन का ही काम करती थी, जिससे बहुत कम आमदनी हो पाती थी। मां काली स्व सहायता समूह की सदस्य श्रीमती राधिका कचलाम ने बताया कि कुछ दिन पहले वे पारिवारिक काम से बाहर गयी थी, जहां उन्होंने देखा कि कई दुकानों का संचालन महिलायें कर रही थी। उन्होंने अपने गांव में समूह बनाकर कोई काम करने की सोची। आसपास की महिलाओं से बातचीत कर उन्होंने महिला समूह बनाने का निर्णय लिया। ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से उन्होंने समूह का गठन किया। अपने समूह में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए उन्होंने स्थानीय बैंक से 1 लाख रूपये की वित्तीय मदद लेकर किराना दुकान की शुरूआत की। राधिका ने बताया कि आवश्यकतानुसार समूह की सभी महिलायें अपने घरेलू काम को पूरा करने के बाद दुकान में आकर पारी-पारी से दुकान का संचालन करती है। दुकान में आसपास के स्कूल, छात्रावासों में रहने वाले बच्चों के लिए कापी, पेन, चाकलेट, बिस्किट आदि सामान रखना शुरू किया। जिससे धीर-धीरे आमदनी भी बढऩे लगी। जिससे उन्होंने बैंक ऋण पूरा चुका दिया। इन आदिवासी महिलाओं की मेहनत की बदौलत दुकान की बिक्री में इजाफा होने लगा और महीने में लगभग 20-25 हजार रूपये हो गई। उनकी हालत पहले से काफी बेहतर हुई है। इन पैसों से उन्होंने अपने जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए जरूरी सामान भी खरीद लिया है।
सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है। इसी कड़ी में बिहान योजनांतर्गत जिले के अंदरूनी ग्रामीण महिलाओं को स्व सहायता समूह से जोड़कर उन्हें आर्थिक गतिविधियों से जोड़कर उनके जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। समूह की महिलायें न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि ग्रामीण आदिवासी महिलाओं में भी सामाजिक बदलाव ला रही है। ग्रामीण क्षेत्र में स्वरोजगार के लिए छोटी-छोटी वित्तीय मदद देने से स्वसहायता समूह काफी कारगार साबित हो रहे हैं।

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