भारत तदर्थ से संस्थागत मध्यस्थता की ओर रुख करे: जस्टिस मल्होत्रा

नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ने देश की मध्यस्थता प्रक्रिया को दुरुस्त करने की आवश्यकता जताते हुए शनिवार को कहा कि भारत को तदर्थ मध्यस्थता से संस्थागत मध्यस्थता की ओर रुख करना चाहिए। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने नानी पालकीवाला आर्बिट्रेशन सेंटर (एनपीएसी) के तत्वावधान में आयोजित 12वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन के दौरान कहा कि देश में मध्यस्थता प्रक्रिया को दुरुस्त करने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि न्यायिक समीक्षा की रूप-रेखा को व्यापक किये बिना आंतरिक अपील के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके। उन्होंने अपने संबोधन में 1996 के संबंधित अधिनियम के तहत फैसलों और इसके दायरे सहित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत को तदर्थ मध्यस्थता से संस्थागत मध्यस्थता की ओर रुख करने का सही समय आ गया है। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने प्रशिक्षित मध्यस्थकारों की नियुक्ति को इस क्षेत्र के लिए अति अनिवार्य बताते हुए कहा कि मध्यस्थकारों को यदि विषय की वाकई जानकारी होगी तो उसके आदेशों की न्यायिक समीक्षा के मौके कम होंगे।
उन्होंने मध्यस्थकारों की नियुक्तियों में आने वाली चुनौतियों और उनके समक्ष भविष्य में आने वाले जोखिमों पर चर्चा की। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं एनपीएसी डायरेक्टर अरविंद पी. दातर ने विदेशी वकीलों और विदेशी मध्यस्थकारों की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा, "पिछले 25 सालों से मैं सुनता आ रहा हूं कि हमें क्यों तदर्थ मध्यस्थता नहीं रखनी चाहिए। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम संस्थागत मध्यस्थता की ओर रुख करें, कम से कम सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए यह ज़रूरी है। इससे पहले कि हम अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की ओर बढ़ें, हमें घरेलू मध्यस्थता को सशक्त बनाना होगा। सम्मेलन में पांच पैनल चर्चाएं हुईं, जिनमें मध्यस्थता से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। गौरतलब है कि 2005 में स्थापित एनपीएसी दक्षिणी भारत में एकमात्र आर्बिट्रेशन मंच है जिसे मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा औपचारिक मान्यता दी गई है। पिछले साल दिल्ली में इसकी शाखा के उद्घाटन के बाद यह पहला भारतीय आर्बिट्रेशन संस्थान बन गया, जिसके देश में दो केन्द्र हैं।

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