असली ताकत तो ताहिरा से ही मिली : आयुष्मान खुराना


बीते साल आपकी दोनों फिल्में अंधाधुन और बधाई हो बेहद कामयाब रहीं। इस कामयाबी से आपमें और आपके इर्द-गिर्द क्या बदलाव आया? आपके मुताबिक, एक ऐक्टर के लिए बॉक्स-ऑफिस सक्सेस कितनी अहमियत रखती है?
जब फिल्म कामयाब होती है, तो आपका आत्मविश्वास बढ़ता है कि जो आप सोच रहे हैं या जैसी फिल्में चुन रहे हैं, वे लोगों को अच्छी लग रही है। अपनी सोच और समझ पर भरोसा बढ़ जाता है। लोग भी ज्यादा सराहने लगते हैं, ज्यादा प्यार करने लगते हैं। इसीलिए, मुझे लगता है कि बॉक्स-ऑफिस पर कामयाबी बहुत इंपॉर्टेंट है, क्योंकि एक ऐक्टर अपने साथ-साथ दूसरे लोगों के लिए भी ऐक्ट करता है। एक कलाकार के तौर पर मैं कहानी को देखता हूं। अगर कहानी मुझे पसंद आती है तो मैं उसमें घुस जाता हूं, लेकिन जब तक ऑडियंस की स्वीकृति न मिले, उसका फायदा कुछ नहीं होता। हां, एक कलाकार के तौर पर आपको खुद भी मजा आना चाहिए, लेकिन आपको यह भी देखना चाहिए कि आप उन ऑडियंस के लिए भी काम कर रहे हैं जो पैसे देकर टिकट खरीदकर फिल्म देखने जाती है। आप उनको चीट नहीं कर सकते। आपका पहला उद्देश्य लोगों को एंटरटेन करना है।
पिछले साल प्रफेशनल लाइफ में जहां आपको बेशुमार कामयाबी मिल रही थी तो वहीं पर्सनल लाइफ में आपकी सबसे अजीज, आपकी पत्नी ताहिरा कैंसर के दर्द से गुजर रही थीं, लेकिन इस मुश्किल वक्त का आप दोनों ने जिस मजबूती सामना किया, वह प्रेरणादायक है। इतनी हिम्मत कहां से मिली?
यह ताकत ताहिरा से ही आई, क्योंकि यह उन पर निर्भर था। अगर वह कमजोर पड़ जातीं तो मैं भी शायद कमजोर पड़ जाता। वे इतनी स्ट्रेंथ दिखा रही थीं तो मेरा कमजोर पडऩे का कोई मतलब ही नहीं था। फिर, परिवार का भी सपॉर्ट था, लेकिन सबसे बड़ी बात यही थी कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी। शायद एक बार बुरा लगा होगा, जब शुरू में पता चला, लेकिन उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अच्छी बात यह है कि जल्दी पता चल गया, शुरू में स्टेज जीरो था, जो स्टेज वन हो गया था, लेकिन हमने कीमोथेरपी कराई, सारा इलाज हो गया, ऑपरेशन भी हुए, तो ये सारी ताकत उन्हीं से आई। बहुत से लोग बोलते हैं कि आप बहुत सपॉर्टिव पति हैं, लेकिन कौन नहीं होगा, ऐसे मौके पर आप क्या करेंगे? सपॉर्टिव ही होंगे न, इसलिए इस बात के लिए मेरी तारीफ नहीं होनी चाहिए। उनकी तारीफ करनी चाहिए।
आप एक्सपेरिमेंट तो पहली फिल्म विकी डोनर से ही कर रहे हैं, लेकिन तब कुछ फिल्में चली, कुछ नहीं चलीं। जबकि, अब बैक टु बैक शुभ मंगल सावधान, बरेली की बर्फी, अंधाधुन, बधाई हो, सभी फिल्में सुपरहिट हो रही हैं। क्या अब आपने ऑडियंस की नब्ज पकड़ ली है?
आप जिंदगी के अनुभवों से सीखते हैं। आपकी फ्लॉप फिल्में बहुत कुछ सिखाती हैं, जब आप बाद में सोचते हैं कि उसमें क्या गलत हुआ ताकि उसे आगे न दोहराया जाए। जैसे, पहले मैं अपने मन की नहीं सुनता था। लोगों की ज्यादा सुनता था। उनकी राय ज्यादा लेता था। प्रॉजेक्ट को देखता था, कहानी को नहीं देखता था। लगता था कि अच्छा ये हिरोइन है, ये डायरेक्टर है, ये प्राडॅक्शन हाउस है तो कहानी तो बन ही जाएगी। ऐसा नहीं होता। अब मैं सिर्फ कहानी को देखता हूं। कहानी को एक ऑडियंस के लिहाज से सुनता या पढ़ता हूं। अगर ऑडियंस के तौर पर मुझे फिल्म अच्छी लगी तो करता हूं। अच्छी नहीं लगी तो नहीं करता हूं, चाहे वह बड़े से बड़ा डायरेक्टर या बड़े से बड़ा प्रॉडक्शन हाउस क्यों न हो। यह बात मैंने अपनी फ्लॉप फिल्मों से सीखी कि बड़े से बड़ा डायरेक्टर भी फ्लॉप फिल्म दे सकता है और फ्लॉप डायरेक्टर भी हिट फिल्म दे सकता है, यह सब स्क्रिप्ट पर डिपेंड करता है।
इन दिनों सोशल मीडिया पर आपकी फिलॉसफिकल शायरी की भी खूब चर्चा है। आप पहले गाने लिखते रहे हैं, अब शायरी की ओर रुख कैसे हुआ? क्या किताब का भी प्लान है?
मैं बचपन से लिखता रहा हूं, लेकिन पोस्ट नहीं करता था। मुझे लगता था कि मुझे अपना टैलंट अपने गानों में दिखाना चाहिए। आजकल मैं गाने नहीं लिख पाता हूं, तो ये कहीं न कहीं तो निकलेगा (हंसते हैं), तो यह शायरी और कविताओं के जरिए निकल रहा है। अब ये काफी इक_ी हो गई हैं, तो कभी न कभी किताब तो आएगी ही। काम चल रहा है, धीरे-धीरे लिखी जा रही हैं।
आपकी ज्यादातर फिल्में सोशल टैबू को तोड़ती, लीक से हटकर सब्जेक्ट वाली कॉमिडी ऐंटरनेटर्स होती हैं। आपको लगता है कि एक खास जॉनर में स्थापित होने का फायदा और नुकसान दोनों है।
नुकसान न हो, इसके लिए बीच में आपको एक अंधाधुन टाइप की फिल्म करनी पड़ेगी। मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है कि मैं हर फिल्म में कुछ अलग करूं। मेरे हिसाब से अपना एक जोन बनाना जरूरी है। फिर, जब आप उस जोन से कुछ हटकर करेंगे, तो लोग कहेंगे कि इसने कुछ अलग किया, लेकिन जोन बरकरार रखना जरूरी है। अगर आप हर फिल्म में कुछ अलग करेंगे तो ऐक्टर के तौर पर थक जाएंगे। म़ुझे लंबी पारी खेलनी है। मैं अलग-अलग रोल करूंगा, लेकिन कोई हड़बड़ी नहीं है। उसके लिए अच्छी स्क्रिप्ट मिलनी चाहिए। मैं सिर्फ कुछ अलग करने के चक्कर में गलत स्क्रिप्ट चुन लूं उसका कोई फायदा नहीं है। इसीलिए, मैंने 5-6 साल तक अंधाधुन जैसी फिल्म का इंतजार किया। इस तरह की फिल्में अब और मिलेंगी, क्योंकि अब रेकॉर्ड अच्छा हुआ है, तो यह समय के साथ होगा।
इसके बाद, बाला में गंजेपन का मुद्दा लेकर आ रहे हैं?
हां, आप देखिए, 30त्न मर्दों में गंजापन देखा जाता है, बीस या तीस की उम्र में। कमाल की बात है कि आज तक इस पर फिल्म ही नहीं बनाई। इस टॉपिक को छेड़ा ही नहीं। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और स्पर्म डोनेशन जैसे बड़े-बड़े टॉपिक्स को हमने छेड़ लिया, जबकि यह तो बहुत कॉमन है। लोग परेशान हैं कि हेयर ट्रांसप्लांट करा रहे हैं और पता नहीं क्या-क्या करवा रहे हैं। डॉक्टर्स का बिजऩस इतना फैला हुआ है, तो एक भी मजेदार स्क्रिप्ट है।
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