बस्तर के शिल्पकारों को नहीं मिल रहा उनकी मेहनत का मोल

  • बस्तर की कलाकृतियों से मालामाल हो रहे बिचौलिए


 जगदलपुर । बस्तर के ग्रामीण अंचलों में बसे बस्तर की कला को जीवंत रखने वाले स्थानीय शिल्पियों को ही उनकी कला का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है और इन्हीं शिल्पियों की बनाई गई कला कृतियां देश के व प्रदेश के शहरों में अच्छे मूल्यों में बिककर बिचौलियों को मालामाल कर जाती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बस्तर में बेलमेटन शिल्पकला व बस्तर की कास्ठकला प्रसिद्ध है और इसके साथ ही माटी कला भी अपनी अलग पहचान रखती है। इनमें सलग्र ग्रामीण शिल्पियों की आर्थिक दशा शिल्प का निर्माण करने के बाद भी शासकीय घोषणा के बावजूद कमजोर रहती है। इन शिल्पियों की बनाई गई कला का माटी मोल सक्रिय बिचौलियों द्वारा दिया जाता है और वे उसे बाहर भेजकर शहरों में बस्तर की कला की प्रसिद्ध के साथ अनाप-शनाप दमों पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। इस संबंध में आदिवासी विकास निगम के सूत्रों का कहना है कि बस्तर जिले में पंजीकृत 2200 और पूरे संभाग में विभिन्न शिल्पकला के 20 हजार शिल्पि पंजीकृत हैं। निगम के सूत्रों ने यह स्वीकार किया कि बनाने वाले शिल्पियों से बने शिल्प के खरीद के लिए निजी संस्थायें सक्रिय रहती है और वे शिल्पी के आर्थिक मजबुरी का फायदा उठाकर उनसे कम मूल्यों में शिल्प खरीदते हैं।
इस संबंध में विभिन्न शिल्पियों ने बताया कि शिल्प के लिए आवश्यक कच्चा माल आजकल बहुत महंगा हो गया है। इसके साथ ही शिल्प बनने पर किसी प्रकार का शासकीय प्रोत्साहन भी समय पर नहीं मिलता और उन्हें अपने जीवन यापन के लिए मजबूरी में निजी संस्थाओं व बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता है। उनके लिए अशिक्षा के कारण बाजार का लाभ उठाना भी मुश्किल होता है।  

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