जनजातीय संस्कृति का महाकुंभ 27 दिसम्बर से राजधानी रायपुर में

राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में 25 राज्यों के  कलाकार होंगे शामिल

रायपुर। राजधानी रायपुर में दिनांक 27 दिसम्बर को आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में अब तक देश के 25 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के  आदिवासी नृत्यों कलाकारों से शामिल होने की सहमति मिल चुकी है। इसमें लद्दाख अण्डमान निकोबार और पश्चिमी हिमालय के जम्मू-कश्मीर, केरल राज्यों के आदिवासी नृत्य शामिल हो रहे हैं। राज्य में पहली बार हो रहे जनजातीय संस्कृति के महाकुंभ में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में निवास करने वाली गद्दी जनजाति, किन्नौर जिले के किन्नौरा और पंगीधारी के पंगवाल आदिवासी के मनमोहक प्रस्तुतियां भी आयोजित होगी। पश्चिमी हिमालय स्थित राज्य हिमाचल प्रदेश के किन्नौर क्षेत्र में निवास करने वाली जनजाति किन्नौरा या किन्नर के नाम से जानी जाती है। हिमालयी क्षेत्र होने के कारण किन्नौरा जनजाति के वस्त्रों में ऊनी कपड़ों की बहुतायत रहती है जिन्हें वे खुद बुनते हैं। पुरूष उन से बने पायजामा, लंबा कोट जिसे चुबा कहा जाता है तथा जैकेट पहनते हैं। महिलाओं के वस्त्र में उन की बनी साड़ी जैसा वस्त्र, पूरी बांह की चोली और शॉल आदि शामिल रहते हैं। महिलाओं के आभूषण में तुनोक, ताब, मुलु, चंद्रहार, शोकपोटो, लौंग, बालू, मुंदी, खांडू, धागुलु, सुन्ननगो, पिचों, पट्टू, डिगरा, दोहरु आदि प्रमुख है। कयंग सर्वाधिक लोकप्रिय किन्नौरा नृत्य है जिसमें नर्तक एक दूसरे का हाथ पकड़कर वृत्त बनाते हैं और नृत्य करते हैं। महिला नर्तक गीत भी गाती हैं। नृत्य दल का प्रमुख जिसे दुरे कहा जाता है अपने हाथ में चांदी का बना चंवर लिए होता है जिसमें याक के बाल लगे रहते हैं। जैसे-जैसे गीत गाया जाता है, नर्तक अपनी नृत्य संरचना बदलते रहते हैं। नृत्य के अवसर पर प्रयुक्त वाद्यों में नगाड़ा, रौनसिंघा, ढोल, शानुल, मंजीरे आदि प्रमुख हैं। पश्चिमी हिमालय का हिमाचल प्रदेश अनेक जनजातीय समुदायों का निवास क्षेत्र है। हिमाचल प्रदेश का गद्दी आदिवासी समाज राज्य के चंबा जिले में निवास करता है। चंबा से सिरमोर तहसील में गद्दी जनजाति की प्रदर्शनकारी कलाओं में डंडा रास का प्रमुख स्थान है जिसे त्यौहारों पर तथा मेले में किया जाता है। इस नृत्य में प्रयुक्त वाद्यों में शहनाई, ढोल, पौणा, नरसिंगा आदि प्रमुख है। नृत्य में स्त्री तथा पुरूष दोनों ही शामिल होते हैं जो भेड़ के ऊन से बने पारंपरिक गद्दी पोषाखों में सजे रहते हैं। वस्त्रों में चोली नामक परिधान पहाना जाता है जिसमें कमर पर डोरा बंधा रहता है। गद्दी समाज के लोग अपने इस परिधान को भगवान शंकर का वस्त्र कहते हैं। डंडा रास की शरूआत भगवान शंकर की पूजा से होती है जिसके पश्चात नागदेवता की स्तुति गायी जाती है फिर आरंभ होता है शहनाई की धुन पर पारंपरिक गद्दी नृत्य डंडा रास। इस नृत्य में पहने जाने वाले आकर्षक हिमायली परिधान, पर्वतीय धुन और लयबद्ध नृत्य मुद्राएं दर्शकों को बांधे रहती है। पंगवाला हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की पांगी तहसील में निवास करने वाली एक जनजाति है। पंगवाला जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि, बागवानी, भेड़-बकरी पालन इत्यादि है। पांगी क्षेत्र साल में 6 महीने नवंबर से अप्रैल तक बर्फ से ढका रहता है। इसी बर्फ से ढके मौसम में पंगवाला लोगों द्वारा अपने धार्मिक और पारिवारिक उत्सवों पर घुरई नामक नृत्य किया जाता है। यह नृत्य जुकारू उत्सव पर लगातार 10 दिनों तक चलता है। नृत्य मुख्यत: खुले जगह पर या घरों की छतों पर किया जाता है। घुरई में पहने जाने वाले परिधान में पंगवाली सूट के साथ पंगवाली चादर, लाल गाछी तथा सिर पर जोजी और पैरों में पहने जाने वाले विशेष प्रकार के घास से बने जूते सम्मिलित हैं। नृत्य के अवसर पर महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों में चंद्रहार, डोड माला, कडू, कंगन, कांटे कोका, मुर्गी फूली इत्यादि प्रमुख हैं। इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले वाद्य ढोलक, बांसुरी, नगाड़ा, कँछाल, तुरही आदि हैं।

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