जगदलपुर । वनोपज गिलोय की उपलब्धता बस्तर में है और इस गिलोय का उपयोग विभिन्न प्रकार की 50 बीमारियों की औषधी बनाने में होता है। बस्तर से बाहर जाकर इसका मूल्य कई गुणा बढ़ जाता है, लेकिन बस्तर के लोगों को समर्थन मूल्य पर ही नहीं, वरन बिचौलिये अपने मनमाने दामों पर इसकी खरीद कर रहे हैं। खरीदी करने वाले न तो समर्थन मूल्य पर खरीदी करते हैं और न ही इस खरीदी में वन प्रबंधन समितियों को शुल्क ही देते हैं। इसके कारण आज यह गिलोय मिट्टी के मोल खरीदा जा रहा है। जबकि इसके संग्रहणकर्ता ग्रामीणों को इसका अधिक मूल्य मिलना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि यह गिलोय आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में उपयोग में आता है और 50 से अधिक बीमारियों की दवा बनाकर इसे बड़ी कंपनियां अच्छे मूल्यों में बेचकर मुनाफा कमाती है। गिलोय में प्रचुर मात्रा मे कैल्शियम, प्रोटीन और फास्फोरस होता है तथा इसके पत्तों में स्टार्च भी पाया जाता है। बस्तर में इस गिलोय की उपलब्धता अच्छी होती है। इसके महत्व को देखते हुए केंद्र शासन की संस्था ट्राईफेड ने गिलोय को वन उत्पादों के अंतर्गत लघु वनोपज की श्रेणी में रखा है। इसका समर्थन मूल्य भी 21 रूपए प्रति किलो किया गया है।
आज ग्रामीणों को गिलोय की कच्चे बेलों के छोटे टुकटे दो रूपए से लेकर तीन रूपए तक मूल्य बिचौलियों से प्राप्त होता है, जबकि ग्रामीणों को 21 रूपए मिलना चाहिए। गिलोय के पीपरमेंट चाक्लेट बनाने में भी औषधीयुक्त की शक्ल इसका उपयोग होता है।
इस संबंध में सुषमा नेताम प्रभारी अधिकारी जिलावनोपज संघ बस्तर का कहना है कि संग्राहकों को समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है और वन प्रबंधन समितियों को भी शुल्क नहीं मिल रहा है। इसकी जानकारी लेकर उचित कार्रवाई की जायेगी।
